December 10, 2009

दूर देश से आई ..............एक परी


गुरुवार (12नवंबर) को जब मैं घर से दफ्तर की ओर जा रहा था तो मोबाइल की घटी बजी। मुझे नया नम्बर था, सड़क पर काफी भीड़भाड़ थी सोचा फोन न उठाऊं क्योंक गाड़ी चलाने में काफी परेशानी हो रही थी। फिर फोन करने वाले के बारे में जानने के गरज से मैने फोन उठा लिया। कोई उबैदुल अलीम साहब बोल रहे थे। पहले उन्होंने बताया कि कहां से उन्होंने मेरा नम्बर हासिल किया। फिर कहने लगे कि एक विदेशी महिला ने एक किताब लिखी है वे आपके अखबार में अपनी पुस्तक की समीक्षा छपवाना चाहती हैं। अलीम साहब ने बताया कि यद्यपि उस पुस्तक के बारे में दिल्ली के सभी अंग्रेजी अखबारों ने बहुत कुछ लिख दिया है लेकिन विदेशी लेखिका की इच्छा है कि पुस्तक के बारे में स्थानीय भाषा के अखबारों में भी कोई खबर होनी चाहिए। किसी विदेशी महिला का स्थानीय भाषा के अखबार में अपने काम को छपवाने जैसा अनुरोध का मामला मेरे लिए कुछ अलगा सी घटना थी। अतः मैने कहा कि मैं खुद आ जाऊंगा आप दिन में दो बजे कहीं मिल जाइए। फिर यह भी तय हुआ कि हम लोग क्नाट प्लेस के निकट बाराखंभा स्थित आक्सफोर्ड बुक स्टोर पर मिलते हैं।
आक्सफोर्ड स्टोर तक पहुंचने के पहले मेरे मन में सिर्फ एक ही कौतुहल था कि वह विदेशी महिला अपने काम को हिंदी पाठकों तक क्यों पहुंचाना चाहती है। प्रायः ऐसा होता नहीं है। बुक स्टोर में पहुंचा तो मैने सबसे पहले उबैदुल साहब को फोन लगाया क्योंकि मैं उन्हें भी नहीं पहचानता था। वे पास ही स्थित एक टेबल पर बैठे थे उठकर मुख्य गेट पर आए हम लोग अंदर स्टार के साथ बने लाउंज में पहुंच गए। आक्सफोर्ड स्टोर का यह हिस्सा काफी बार सा था। लोग बैठे काफी स्नैक्स के साथ बातचीत में मशगूल थे। वहां एक टेबिल पर एक विदेशी युवती बैठी थी उसेस उबैदुल साहब ने हमारा परिचय कराया। मेरा साथ एक सहयोगी पत्रकार व फोटोग्राफर भी था। युवती ने गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए अपना नाम बताया। उससे मैने हाथ तो मिला लिया लेकिन अमेरिकी लहजे में अंग्रेजी बोलने के कारण, उसका नाम क्या है, यह मेरी समझ में नहीं आया। उसने बताया कि वह ब्राजील से है। यहां इंडिया में पिछले छह महीने से रही रही है। उसने अपना विजटिंग कार्ड दिया। जिस पर उसका नाम लिखा था, कांसीसाओ प्राउन (Conceicao Praun)। वह दक्षिणी अमेरिका स्थित ब्राजील के सबसे पड़े शहर साओ पाउलो की निवासी हैं। प्राउन ने बताया कि वह आठ साल पहले जब भारत पहली बार अपनी मां के साथ आई थीं तो भारत में लोगों द्वारा जगह जगह गंदगी फैलाने तथा उन्हीं गंदगी के बीच कुछ लोगों द्वारा अपने लिए रोजी रोटी ढूंढते देखा था। यह सब उन्हों बहुत अजीब लगता था।
प्राउन खुद को सोशल कल्चरल वर्कर मानती हैं। ऐसा उन्होंने अपने विजिटिंग कार्ड में भी लिखा है। पहली नजर में मुझे लगा कि यह लड़की भी हमारे देश की उन महिलाओं की तरह है जो भरे पेट होने पर अपना खाली समय काटने के लिए दुनिया व समाज की सेवा का काम केवल इसलिए शुरु कर देती हैं क्योंकि समय बिताने के लिए इससे अच्छा कोई काम नहीं मिल पाता है। मैने इस विदेशी बाला से पूछा कि वह भारत में क्या करने आई थीं। पाउलों ने बताया कि वह यहां योग सीखने आई थीं। वे भारत को अच्छी तरह देखना चाहती थीं। इसी क्रम में वे विभन्न शहरों में घूमती रहीं है। इसी घुम्मकड़ी के दौरान प्राउन ने एक बार फिर उन तत्वों को देखना शुरु किया जो पर्यावरण को गंदा कर रहे हैं। इस बार वे इस मुद्दे पर कुछ करने के लिहाज से जिन भी शहरों में गई वहां पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने तथा उसे सुधारने वाले कामों को अपने कैमरे में कैद करने लगीं। बाद में इन्ही चित्रों को उन्होंने एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराया। वे इसी किताब के बारे में दैनिक जागरण में खबर छपवाना चाहती थी ताकि यहां की आम जनता को पता चले कि वह अपने किन-किन कामों से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस पुस्तक में जल, वायु तथा धरती को होने वाले नुकसान पर विस्तृत चित्र कथाएं कहानी है।
कांसीसाओ प्राउन एक गंभीर विचार वाली युवती थी वह जानती थी कि मेरे इस काम को कहीं भारत के प्रति मेरा नजरिया न मान लिया जाए इसीलिए कहती हैं कि मैंने पुस्तक में भारतीय शहरों के चित्रों को अपना विषय बनाया यह सिर्फ संयोग है क्योंकि में इन दिनों भारत में रही रही हूं। लेकिन प्रकृति के प्रति मनुष्य का नकारात्मक व्यवहार पूरी दुनियां में दिखायी देता है। वे इस बात से दुखी हैं कि ‘‘हम हवा, पानी व धरती से जितना पाते हें उसका एक अंश भी उसके संरक्षण के लिए नहीं खर्च करना चाहते हैं। यह सब देखकर मुझे अपने कंधों पर एक बोझ महसूस होता है। इसीलिए पुस्तक लिखकर मैं कुछ लोगों को इस दिशा में जागरूक करना चाहती हैं।’’

मैने पूछ आपके देश ब्राजील को किस लिए दुनिया में जाना जाता है। वे बोली शायद गन्ना, फुटबाल व एथनाल के लिए। एथनाल गन्ने से बनने वाला एक बायो फ्यूल है जिसे भारत में भी पेट्रोल के साथ मिलाकर ईंधन के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। मैने कहा कि आपके देश को कार्निवाल के लिए भी जाना जाता है। प्राउन मेरी बात से कुछ असहज लगीं। और कहा वह सिर्फ एक शहर रियो डी जनेरियो का आयोजन है। मेरे यह कहने पर कि ब्राजीलियन टूरिज्म डिपार्टमेंट इस कार्निवाल को ब्राजील की सांस्कृतिक धरोहर की तरह प्रचारित करता है। इस पर पाउलों कुछ असहज दिखीं और कहा कि मैं इस प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहती। थोड़ा रुककर उन्होंने कहा कि सच यह है कि रियो डी जनेरियो शहर में होने वाला यह कार्निवाल समाज के ऐसे तबके द्वारा आयोजित किया जाता है जो ब्राजील का संभ्रांत वर्ग नहीं है। इसमें हिस्सा लेने वाले अधिकांश लोग वहां पर बैंड कारोबार से जुड़े लोग हैं। कार्निवाल में शामिल महिलाएं भी उन्हीं से जुड़ी होती हैं। वे मानती हैं कि पूरी दुनिया में कार्निवाल को जिस तरह से प्रचारित किया जाता है उससे ब्राजीलियन युवतियों के प्रति लोगों में गलत छवि बनती है।
प्राउन भारत से वापस जाकर यहां की जो छवि लेकर जाएंगी वह कार्निवाल के प्रति दुनिया की नजर से भी ज्यादा खतरनाक है। हम भारतवासी अपनी धरती, हवा व जल स्रोतों के प्रति आखिर कब तक जागरूक होंगे। जो बातें दूर देश से आई एक युवती इतने गौर से देखती है उसे हम कब तक अनदेखा करते रहेंगे।
प्राउन का प्रकृति प्रेम उनके उस बिजिटिंग कार्ड पर भी दिखता है, जिस पर अंग्रेजी में लिखा था, for approximately 50 kg. of paper one tree has been sacrificed.