दिल्ली में बाढ़ से निपटने को तैयारी पूरी, दिल्ली देहात के तालाबों को पक्का कराने पर करोड़ो खर्च, नलकूप से भरा जाएगा तालाबों में पानी.ऐसी खबरें पढ़कर लगता है कि सरकार वाकई में बड़ी मुस्तैद है. लेकिन गौर करने पर मामला कुछ और ही नजर आता है.जिस शहर में पीने को पानी न हो वहां बाढ़ व तालाब के नाम पर करोड़ो रुपए बहाना केवल तुगलक के राज्य में संभव था या कि इक्कीसवीं सदी में कांग्रेस के राज में.
जीं हां कांग्रेसी सरकार इन दिनों ऐसी समस्याओं से जूझ रही है जो कि है ही नहीं.अलबत्ता समस्याएं दिखाकर कुछ लोग अपना हित साधन जरुर कर रहे हैं. दिल्ली में बाढ़ की तैयारियों को खबर तो अभी ताजा है.दिल्ली की बरसात का हाल तो सभी को मालुम है. यहां होने वाली कुल बारिश से धान की फसल तक उगाना संभव नहीं है.सीवर व नालियों की वर्षों से सफाई नहीं होने के कारण सड़क पर जमा होने वाले पानी को छोड़ दें तो कहीं भी दिल्ली में बारिश से संकट नहीं है. यहां तो इतनी भी बारिश नहीं होती की ताल तलैया भी भर सके. हां सरकार है तो जनकल्याण वाले विभाग भी होंगे और बजट भी. ऐसे बाढ़ व सूखा राहत ऐसा कार्य है जिसमें नेता व अफसर अक्सर हरे भरे हो जाते हैं. सो दिल्ली में बाढ़ से निपटने की तैयारियां शुरु हो गई है शायद कुछ बजट भी जारी हो गया हो.अब जिस प्रदेश (जी हां दिल्ली इक शहर ही नहीं राज्य भी है)में बारिश से खेतों में पलेवा भी नहीं लगाया जा सकता हो वहां तालाबों में पानी कहां से आएगा.फिलहाल जनकल्याणकारी सरकार ने पिछले एक साल में दिल्ली में तालाबों की खुदाई व पुनुरुद्धार के नाम पर करोड़ो रुपए खर्च कर चुकी है. तालाबों के चारो ओर संगमरर के पत्थर लगाकर उन्हें खूबसूरती प्रदान की गई. इस सब पर बीस लाख से लेकर एक करोड़ रुपए तक प्रति तालाब खर्च किया गया.एक तो बारिश का अभाव ऊपर से चारो ओर से तालाब को ऊंचा कर पक्का कर दिए जाने से तालाबों में बारिश का पानी जाने का कोई रास्ता भी नहीं दिया गया.तालाब बनने के बाद उद् घाटन के समय नेताओं ने भी पूरा श्रेय लिया. अब जब बारिश का मौसम आया तो योजना बनाने वाले अधिकारी बता रहे हैं कि तालाबों को भरने के लिए नलकूप लगाया जाएगा. अरे भइया जब जमीन में पानी ही नहीं है और उसे दुरुस्त करने के लिए ही तालाबों को रिचार्ज सोर्स बनाया जा रहा है तो जमीन का पानी निकाल कर तालाब में डालने का औचित्य क्या है.
1 comment:
तभी तो कहते हैं की विनाश काले विपरीत बुद्धि. अब दिल्ली में काबिज दोनों सरकारों के गिने चुने दिन बचे हैं.
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