February 16, 2013

मुंबई से अहमदाबाद के बीच दौड़ेगी देश की पहली बुलेट ट्रेन



india first bullet train will run between mumbai and ahmedabad
नई दिल्ली/बृजेश सिंह |
रेल मंत्रालय फ्रांस की मदद से मुंबई और अहमदाबाद के बीच देश की पहली बुलेट ट्रेन शुरू करने जा रहा है। इस तरह कांग्रेस ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बुलेट ट्रेन शुरू करने के सपने को पूरा करने का फैसला लिया है। इस प्रोजेक्ट को पूरा करने पर 63 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे, जो रेल मंत्रालय के सालाना कुल योजनागत बजट से भी अधिक है।

देश में बुलेट ट्रेन चलाने की चर्चा तो दशकों से चल रही है, लेकिन कुछ ठोस फैसला अभी तक नहीं हो सका था। कुछ माह पहले पीएमओ से भी बुलेट ट्रेन योजना को हरी झंडी दे दी गई थी। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिन पहले ही अगले रेल बजट में बुलेट ट्रेन को लेकर केंद्र सरकार से कुछ ठोस घोषणा किए जाने की मांग की थी।

रेलवे ने देश में बुलेट ट्रेन के लिए कुल 12 कॉरीडोर की पहचान की है, जिनमें से सात कारीडोर को पीएमओ तथा योजना आयोग से हरी झंडी भी दी जा चुकी है। रेल मंत्रालय ने अमल के समय सबसे पहले मोदी के गृह राज्य गुजरात को ही प्राथमिकता प्रदान की।

फ्रांसीसी कंपनी एसएनसीएफ से हुए करार के मुताबिक परियोजना को पांच साल में पूरा किया जाएगा तथा परियोजना का खर्च एसएनसीएफ ही उठाएगी। दोनों पक्षों की सहमति से जरूरत पड़ने पर एक साल के लिए यह समय सीमा बढ़ाई जा सकती है। बुलेट ट्रेन के इस प्रोजेक्ट में फ्रेंच नेशनल रेलवे तकनीकी मदद प्रदान करेगी।

दिल्ली में 14 फरवरी को हुए इस समझौते के मौके पर फ्रांस के राष्ट्रपति ओलांद और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मौजूद थे। समझौते के बाद शुक्रवार को मुंबई में फ्रांस से आए एक दल ने सेंट्रल एवं वेस्टर्न रेलवे के अधिकारियों के साथ बैठक भी की।

अहमदाबाद मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना-कुछ तथ्य
कुल स्टेशन--7
संभावित यात्री- 10 लाख सालाना
ट्रैक की लंबाई -लगभग 500 किमी
ट्रेन की स्पीड--300 से 350 किमी प्रति घंटा
प्रस्तावित स्टेशन--कल्याण, मुंबई सेंट्रल, दादर, मुंबई सीएसटी, वसई रोड, सूरत, भरूच, वड़ोदरा तथा अहमदाबाद

March 21, 2011

इंतजार


हमें इंतजार था जिनका हजार शिद्दत से
वो आए पैगाम उनका

उन्हें हम मान बैठे हैं मोहब्बत का खुदा
जो इंसान बनकर भी, मेरे काम आए

फिर भी यारों ये दिल है कि मानता नहीं
सुबह से शाम हो गई इंतजार में उनके

.....पर वो आए पैगाम उनका

करूंगा इंतजार कयामत तक उनके आने का
क्या पता उस रोज ही वो रहम खाएं

जहां जिस हाल में हो तुम सदा खुश रहना
हमें तो सदियों तक इंतजार का इरादा है

February 26, 2011

उम्मीद....अधिकार पर जोर... कर्तव्यों पर विचार तक नहीं

केंद्रीय बजट आने वाला है। रेल बजट आ चुका है। अखबार हो टेलीविजन या अन्य माध्यम। इन दिनों सिर्फ एक ही चर्चा है कि लोगों को सरकार से क्या क्या उम्मीदें। जनता की भलाई के लिए सरकार को क्या करना चाहिए। इनकम टैक्स, सर्विस टैक्स, एक्साइज टैक्स, निर्यात, उद्योग सभी लोगों को सरकार से उम्मीदें हैं। सभी को रियायत चाहिए। अभी काफी कुछ कमा ले रहे हैं पर कुछ और कमाने व बचाने के की गुंजाइश चाहिए। आम आदमी मंहगाई से राहत के लिए सरकार से छूट की उम्मीद संजो रहा है। इसके अलावा बजट में कुछ ऐसा हो कि सबको मकान, मिले सड़के चिकनी बन जाएं। चौबीस घंटे बिजली आए और न जाने क्या क्या। अनुमान, ये होगा तो ऐसा होगा। और वो होगा तो वैसा होगा। आम ओ खास की राय न जाने क्या क्या छप दिख रहा है। इन विचारों व उम्मीद की बाढ़ में एक भी शख्स या एक भी खबर नहीं दिखायी देती जिसमें लोग देश व समाज के लिए कुछ करने की बात करते हों या खुद देश व समाज के प्रति कुछ करने की उम्मीद जगाते हों। क्या सदैव खुद के बारे में सोचते रहने से देश व समाज की उन्नति संभव है। फरवरी का महीना है। चाहे महीने में हजारों कमाने वाला हो या लाखों सभी परेशान हैं कि कुछ ऐसा करो कि टैक्स के रूप में सरकार को एक पाई न देना पड़े। फर्जी कागजात बनाए या जुटाए जा रहे हैं ताकि टैक्स के दायरे से ज्यादा से ज्यादा बचा जा सके। क्या ऐसी मानसिकता वाले लोगों का समाज देश को कुछ दे सकेगा। ऐय्याशी व दारूबाजी पर भले साल में हजारों लाखों खर्च हो जाएं पर टैक्स देने के नाम पर ऐसे लोगों की नानी मरती दिखती है।
हो सकता है कि हमारे कर ढांचे में विसंगतियां हों, यह भी सही है कि बढ़ती महंगाई से तमाम लोग परेशान हैं। पर मंहगाई के चलते फाइव स्टार होटलों में लोगों ने ठहरना छोड़ दिया। सड़कों पर गाड़ियों की संख्या कम हो गई। हवाई जहाज में सीटे खाली रहने लगीं। फैशनेबिल चीजों की बिक्री घट गई। शायद नहीं। हर जगह पहले जैसी भीड़ व बिक्री बनी हुई है। लोग लाखों नहीं करोड़ों के फ्लैट खरीद रहे हैं। देश में लक्जरी कारों की बिक्री में इजाफा दर्ज किया गया है। सिगरेट व शराब की खपत तो हर वर्ष उम्मीद से ज्यादा बढ़ती जा रही है। सच यह है कि जो जितना ज्यादा पैसे बना रहा है वह उतना ही ज्यादा कर चोरी के लिए प्रयास भी करता नजर आता है।
क्या हो उपाय
आखिर सरकार को क्या उपाय अपनाने चाहिए कि जो लोग तमाम प्रयासों के बावजूद पैसा तो खूब बना रहे हैं पर कर देने से बच जाते हैं। जाहिर है पैसा रुपया खुद में उपभोग की बस्तु नहीं है। यह तो बिनिमय का माध्यम है। ज्यादा पैसा ज्यादा ऐय्याशी। सरकार को चाहिए की अति महंगी बस्तुओं पर भारी टैक्स लगाए। करोड़ों का मकान खरीदने वाला मोटा टैक्स दे पर दो कमरों का छोटा मकान खरीदने वालों को ऐसे कर से मुक्ति दी जानी चाहिए। इसी साल जुलाई से प्रापर्टी की खरीद पर लगाए गए सर्विस टैक्स के मामले में इस पद्धति को लागू किया जाना चाहिए। करोड़ों की कार खरीदने वाला किसी न किसी रूप में कर चोरी करता ही है। जिसे सरकारी संस्थाएं चाहें भी तो नहीं पकड़ सकती हैं। तो फिर करोड़ों की कार में सामान्य कार की तुलना में कई गुना लग्जरी टैक्स क्यों नहीं वसूल किया जाना चाहिए। इसी तरह लग्जरी व फैशन की तमाम ऊंची जीचों पर भारी टैक्स होना चाहिए। शराब व सिगरेट पर भी भारी टैक्स लगाना चाहिेए। यह टैक्स खपत के बजाय प्रोडक्शन सेंटर या आयात पर लगना चाहिए। क्योंकि वास्तविक खपत के बारे में झूठे आंकड़ों के चलते बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी होती है।
मिले सम्मान
सरकार व संस्थाओ द्वारा ऐसे लोगों को विशेष सम्मान दिया जाना चाहिए जो ज्यादा टैक्स चुकाते हैं। ऐसे लोगों को प्रिविलेज नागरिक अथवा प्रिविलेज कंपनी का दर्जा देना चाहिए। उन्हें कुछ जरुरी रियायतें भी दी जानी चाहिए। इसके ठीक विपरीत जो लोग टैक्स चोरी के करते पकड़े जाएं। उन्हें अलग श्रेणी में रखा जाए। तथा ऐसे लोगों पर कुछ मामलों में सीमित प्रतिबंध लगने चाहिए। यह सब कर चोरी संबंधी नियमों के तहत लगने वाले जुर्माने आदि से इतर हो। ऐसे लोगों के नाम क्षेत्रवार सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित भी किए जाने चाहिए ताकि वे सामाजिक सम्मान व अपमान के भागीदार हों।

March 09, 2010

स्साला वो तो .............साहब बन गया

कु माह बाद दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेल होने हैं। खेल को सकुशल संपन्न कराने के लिए विभिन्न तैयारियों के समय से पूरा होने से ज्यादा चिंता इस समय खेलों के दौरान सुरक्षा बन गई है। तमाम देश सुरक्षा पर अपनी चिंता जता चुके हैं। जो बात खेल आयोजन से जुड़े छोटे से छोटे कर्मचारी तक को पता है वह बात राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी को न पता हो ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है। पर 28 फरवरी को सुरक्षा कारणों से जब कलमाड़ी को वीवीआईपी के लिए आरक्षित गेट नंबर एक तक गाड़ी ले जाने से रोक दिया गया तो वे भड़क गए। जबकि उन्हें कड़ी सुरक्षा मानकों के पालन के लिए खुश होना चाहिए था। ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में 28 फरवरी को हाकी विश्वकप का उद्घाटन था। यहां जब कलमाड़ी साहब पहुंचे तो सुरक्षा मानकों के अनुसार उनकी गाड़ी पर लगे वीआईपी पास के अनुसार उन्हें वीआईपी पार्किग में रोक दिया गया। कलमाड़ी साहब के साथ उस समय अंतरराष्ट्रीय हाकी फेडरेशन के अध्यक्ष मिस्टर नेग्रे भी थे। बेहतर होता कि कलमाड़ी साहब नेग्रे को बताते कि देखो हमारे यहां सुरक्षा कितनी कड़ी है। बिना पास हमारी भी गाड़ी गेट नंबर एक तक नहीं जा सकती है। पर उन्होंने सुरक्षा में तैनात दिल्ली पुलिस के जवानों को अपना नाम व खेल आयोजन का अगुवा बताते हुए गेट नंबर एक तक जाने की जिद कर दी। पर दिल्ली पुलिस टस से मस न हुई। अब कलमाड़ी साहब इसे अपनी प्रोफाइल व प्रोटोकाल की बेइज्जती मान रहे हैं। और उन्होंने आइंदा ऐसा न करने के लिए दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को एक चिट्ठी भी लिख मारी। यह अलग बात है कि घटना वाले दिन उद्घाटन समारोह में खुद पुलिस कमिश्नर को भी सुरक्षा कारणों से उसी जगह पर गाड़ी छोड़नी पड़ी थी जहां पर कलमाड़ी को रोका गया था। तय सुरक्षा मानकों को गेट नंबर एक तक केवल उन्हीं वीवीआईपी को गाड़ी ले जाने की अनुमति थी जिन्हें विशेष पास मिले थे। इसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री व किसी अन्य देश के राष्ट्राध्यक्ष जैसे लोग ही शामिल हों सकते हैं।इस घटना से यह सवाल उठता है कि आम लोगों से नियम कानून मानने की अपेक्षा करने वाले बड़ी कुर्सियों पर बैठे लोग खुद इन नियमों के पालन को लेकर कितने गंभीर हैं। क्या इस मानसिकता के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयोजनों को सफलतापूर्वक पूरा किया जा सकता है। देश की राजधानी दिल्ली जहां हर दूसरा आदमी खुद को वीआईपी, ऊंची पहुंच वाला मानता या बताता है यदि वही नियम तोड़ने पर अमादा हो जाए तो कौन सा सिस्टम इस शहर को चलाने में सक्षम होगा।

December 10, 2009

दूर देश से आई ..............एक परी


गुरुवार (12नवंबर) को जब मैं घर से दफ्तर की ओर जा रहा था तो मोबाइल की घटी बजी। मुझे नया नम्बर था, सड़क पर काफी भीड़भाड़ थी सोचा फोन न उठाऊं क्योंक गाड़ी चलाने में काफी परेशानी हो रही थी। फिर फोन करने वाले के बारे में जानने के गरज से मैने फोन उठा लिया। कोई उबैदुल अलीम साहब बोल रहे थे। पहले उन्होंने बताया कि कहां से उन्होंने मेरा नम्बर हासिल किया। फिर कहने लगे कि एक विदेशी महिला ने एक किताब लिखी है वे आपके अखबार में अपनी पुस्तक की समीक्षा छपवाना चाहती हैं। अलीम साहब ने बताया कि यद्यपि उस पुस्तक के बारे में दिल्ली के सभी अंग्रेजी अखबारों ने बहुत कुछ लिख दिया है लेकिन विदेशी लेखिका की इच्छा है कि पुस्तक के बारे में स्थानीय भाषा के अखबारों में भी कोई खबर होनी चाहिए। किसी विदेशी महिला का स्थानीय भाषा के अखबार में अपने काम को छपवाने जैसा अनुरोध का मामला मेरे लिए कुछ अलगा सी घटना थी। अतः मैने कहा कि मैं खुद आ जाऊंगा आप दिन में दो बजे कहीं मिल जाइए। फिर यह भी तय हुआ कि हम लोग क्नाट प्लेस के निकट बाराखंभा स्थित आक्सफोर्ड बुक स्टोर पर मिलते हैं।
आक्सफोर्ड स्टोर तक पहुंचने के पहले मेरे मन में सिर्फ एक ही कौतुहल था कि वह विदेशी महिला अपने काम को हिंदी पाठकों तक क्यों पहुंचाना चाहती है। प्रायः ऐसा होता नहीं है। बुक स्टोर में पहुंचा तो मैने सबसे पहले उबैदुल साहब को फोन लगाया क्योंकि मैं उन्हें भी नहीं पहचानता था। वे पास ही स्थित एक टेबल पर बैठे थे उठकर मुख्य गेट पर आए हम लोग अंदर स्टार के साथ बने लाउंज में पहुंच गए। आक्सफोर्ड स्टोर का यह हिस्सा काफी बार सा था। लोग बैठे काफी स्नैक्स के साथ बातचीत में मशगूल थे। वहां एक टेबिल पर एक विदेशी युवती बैठी थी उसेस उबैदुल साहब ने हमारा परिचय कराया। मेरा साथ एक सहयोगी पत्रकार व फोटोग्राफर भी था। युवती ने गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए अपना नाम बताया। उससे मैने हाथ तो मिला लिया लेकिन अमेरिकी लहजे में अंग्रेजी बोलने के कारण, उसका नाम क्या है, यह मेरी समझ में नहीं आया। उसने बताया कि वह ब्राजील से है। यहां इंडिया में पिछले छह महीने से रही रही है। उसने अपना विजटिंग कार्ड दिया। जिस पर उसका नाम लिखा था, कांसीसाओ प्राउन (Conceicao Praun)। वह दक्षिणी अमेरिका स्थित ब्राजील के सबसे पड़े शहर साओ पाउलो की निवासी हैं। प्राउन ने बताया कि वह आठ साल पहले जब भारत पहली बार अपनी मां के साथ आई थीं तो भारत में लोगों द्वारा जगह जगह गंदगी फैलाने तथा उन्हीं गंदगी के बीच कुछ लोगों द्वारा अपने लिए रोजी रोटी ढूंढते देखा था। यह सब उन्हों बहुत अजीब लगता था।
प्राउन खुद को सोशल कल्चरल वर्कर मानती हैं। ऐसा उन्होंने अपने विजिटिंग कार्ड में भी लिखा है। पहली नजर में मुझे लगा कि यह लड़की भी हमारे देश की उन महिलाओं की तरह है जो भरे पेट होने पर अपना खाली समय काटने के लिए दुनिया व समाज की सेवा का काम केवल इसलिए शुरु कर देती हैं क्योंकि समय बिताने के लिए इससे अच्छा कोई काम नहीं मिल पाता है। मैने इस विदेशी बाला से पूछा कि वह भारत में क्या करने आई थीं। पाउलों ने बताया कि वह यहां योग सीखने आई थीं। वे भारत को अच्छी तरह देखना चाहती थीं। इसी क्रम में वे विभन्न शहरों में घूमती रहीं है। इसी घुम्मकड़ी के दौरान प्राउन ने एक बार फिर उन तत्वों को देखना शुरु किया जो पर्यावरण को गंदा कर रहे हैं। इस बार वे इस मुद्दे पर कुछ करने के लिहाज से जिन भी शहरों में गई वहां पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने तथा उसे सुधारने वाले कामों को अपने कैमरे में कैद करने लगीं। बाद में इन्ही चित्रों को उन्होंने एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराया। वे इसी किताब के बारे में दैनिक जागरण में खबर छपवाना चाहती थी ताकि यहां की आम जनता को पता चले कि वह अपने किन-किन कामों से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस पुस्तक में जल, वायु तथा धरती को होने वाले नुकसान पर विस्तृत चित्र कथाएं कहानी है।
कांसीसाओ प्राउन एक गंभीर विचार वाली युवती थी वह जानती थी कि मेरे इस काम को कहीं भारत के प्रति मेरा नजरिया न मान लिया जाए इसीलिए कहती हैं कि मैंने पुस्तक में भारतीय शहरों के चित्रों को अपना विषय बनाया यह सिर्फ संयोग है क्योंकि में इन दिनों भारत में रही रही हूं। लेकिन प्रकृति के प्रति मनुष्य का नकारात्मक व्यवहार पूरी दुनियां में दिखायी देता है। वे इस बात से दुखी हैं कि ‘‘हम हवा, पानी व धरती से जितना पाते हें उसका एक अंश भी उसके संरक्षण के लिए नहीं खर्च करना चाहते हैं। यह सब देखकर मुझे अपने कंधों पर एक बोझ महसूस होता है। इसीलिए पुस्तक लिखकर मैं कुछ लोगों को इस दिशा में जागरूक करना चाहती हैं।’’

मैने पूछ आपके देश ब्राजील को किस लिए दुनिया में जाना जाता है। वे बोली शायद गन्ना, फुटबाल व एथनाल के लिए। एथनाल गन्ने से बनने वाला एक बायो फ्यूल है जिसे भारत में भी पेट्रोल के साथ मिलाकर ईंधन के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। मैने कहा कि आपके देश को कार्निवाल के लिए भी जाना जाता है। प्राउन मेरी बात से कुछ असहज लगीं। और कहा वह सिर्फ एक शहर रियो डी जनेरियो का आयोजन है। मेरे यह कहने पर कि ब्राजीलियन टूरिज्म डिपार्टमेंट इस कार्निवाल को ब्राजील की सांस्कृतिक धरोहर की तरह प्रचारित करता है। इस पर पाउलों कुछ असहज दिखीं और कहा कि मैं इस प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहती। थोड़ा रुककर उन्होंने कहा कि सच यह है कि रियो डी जनेरियो शहर में होने वाला यह कार्निवाल समाज के ऐसे तबके द्वारा आयोजित किया जाता है जो ब्राजील का संभ्रांत वर्ग नहीं है। इसमें हिस्सा लेने वाले अधिकांश लोग वहां पर बैंड कारोबार से जुड़े लोग हैं। कार्निवाल में शामिल महिलाएं भी उन्हीं से जुड़ी होती हैं। वे मानती हैं कि पूरी दुनिया में कार्निवाल को जिस तरह से प्रचारित किया जाता है उससे ब्राजीलियन युवतियों के प्रति लोगों में गलत छवि बनती है।
प्राउन भारत से वापस जाकर यहां की जो छवि लेकर जाएंगी वह कार्निवाल के प्रति दुनिया की नजर से भी ज्यादा खतरनाक है। हम भारतवासी अपनी धरती, हवा व जल स्रोतों के प्रति आखिर कब तक जागरूक होंगे। जो बातें दूर देश से आई एक युवती इतने गौर से देखती है उसे हम कब तक अनदेखा करते रहेंगे।
प्राउन का प्रकृति प्रेम उनके उस बिजिटिंग कार्ड पर भी दिखता है, जिस पर अंग्रेजी में लिखा था, for approximately 50 kg. of paper one tree has been sacrificed.