February 26, 2011

उम्मीद....अधिकार पर जोर... कर्तव्यों पर विचार तक नहीं

केंद्रीय बजट आने वाला है। रेल बजट आ चुका है। अखबार हो टेलीविजन या अन्य माध्यम। इन दिनों सिर्फ एक ही चर्चा है कि लोगों को सरकार से क्या क्या उम्मीदें। जनता की भलाई के लिए सरकार को क्या करना चाहिए। इनकम टैक्स, सर्विस टैक्स, एक्साइज टैक्स, निर्यात, उद्योग सभी लोगों को सरकार से उम्मीदें हैं। सभी को रियायत चाहिए। अभी काफी कुछ कमा ले रहे हैं पर कुछ और कमाने व बचाने के की गुंजाइश चाहिए। आम आदमी मंहगाई से राहत के लिए सरकार से छूट की उम्मीद संजो रहा है। इसके अलावा बजट में कुछ ऐसा हो कि सबको मकान, मिले सड़के चिकनी बन जाएं। चौबीस घंटे बिजली आए और न जाने क्या क्या। अनुमान, ये होगा तो ऐसा होगा। और वो होगा तो वैसा होगा। आम ओ खास की राय न जाने क्या क्या छप दिख रहा है। इन विचारों व उम्मीद की बाढ़ में एक भी शख्स या एक भी खबर नहीं दिखायी देती जिसमें लोग देश व समाज के लिए कुछ करने की बात करते हों या खुद देश व समाज के प्रति कुछ करने की उम्मीद जगाते हों। क्या सदैव खुद के बारे में सोचते रहने से देश व समाज की उन्नति संभव है। फरवरी का महीना है। चाहे महीने में हजारों कमाने वाला हो या लाखों सभी परेशान हैं कि कुछ ऐसा करो कि टैक्स के रूप में सरकार को एक पाई न देना पड़े। फर्जी कागजात बनाए या जुटाए जा रहे हैं ताकि टैक्स के दायरे से ज्यादा से ज्यादा बचा जा सके। क्या ऐसी मानसिकता वाले लोगों का समाज देश को कुछ दे सकेगा। ऐय्याशी व दारूबाजी पर भले साल में हजारों लाखों खर्च हो जाएं पर टैक्स देने के नाम पर ऐसे लोगों की नानी मरती दिखती है।
हो सकता है कि हमारे कर ढांचे में विसंगतियां हों, यह भी सही है कि बढ़ती महंगाई से तमाम लोग परेशान हैं। पर मंहगाई के चलते फाइव स्टार होटलों में लोगों ने ठहरना छोड़ दिया। सड़कों पर गाड़ियों की संख्या कम हो गई। हवाई जहाज में सीटे खाली रहने लगीं। फैशनेबिल चीजों की बिक्री घट गई। शायद नहीं। हर जगह पहले जैसी भीड़ व बिक्री बनी हुई है। लोग लाखों नहीं करोड़ों के फ्लैट खरीद रहे हैं। देश में लक्जरी कारों की बिक्री में इजाफा दर्ज किया गया है। सिगरेट व शराब की खपत तो हर वर्ष उम्मीद से ज्यादा बढ़ती जा रही है। सच यह है कि जो जितना ज्यादा पैसे बना रहा है वह उतना ही ज्यादा कर चोरी के लिए प्रयास भी करता नजर आता है।
क्या हो उपाय
आखिर सरकार को क्या उपाय अपनाने चाहिए कि जो लोग तमाम प्रयासों के बावजूद पैसा तो खूब बना रहे हैं पर कर देने से बच जाते हैं। जाहिर है पैसा रुपया खुद में उपभोग की बस्तु नहीं है। यह तो बिनिमय का माध्यम है। ज्यादा पैसा ज्यादा ऐय्याशी। सरकार को चाहिए की अति महंगी बस्तुओं पर भारी टैक्स लगाए। करोड़ों का मकान खरीदने वाला मोटा टैक्स दे पर दो कमरों का छोटा मकान खरीदने वालों को ऐसे कर से मुक्ति दी जानी चाहिए। इसी साल जुलाई से प्रापर्टी की खरीद पर लगाए गए सर्विस टैक्स के मामले में इस पद्धति को लागू किया जाना चाहिए। करोड़ों की कार खरीदने वाला किसी न किसी रूप में कर चोरी करता ही है। जिसे सरकारी संस्थाएं चाहें भी तो नहीं पकड़ सकती हैं। तो फिर करोड़ों की कार में सामान्य कार की तुलना में कई गुना लग्जरी टैक्स क्यों नहीं वसूल किया जाना चाहिए। इसी तरह लग्जरी व फैशन की तमाम ऊंची जीचों पर भारी टैक्स होना चाहिए। शराब व सिगरेट पर भी भारी टैक्स लगाना चाहिेए। यह टैक्स खपत के बजाय प्रोडक्शन सेंटर या आयात पर लगना चाहिए। क्योंकि वास्तविक खपत के बारे में झूठे आंकड़ों के चलते बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी होती है।
मिले सम्मान
सरकार व संस्थाओ द्वारा ऐसे लोगों को विशेष सम्मान दिया जाना चाहिए जो ज्यादा टैक्स चुकाते हैं। ऐसे लोगों को प्रिविलेज नागरिक अथवा प्रिविलेज कंपनी का दर्जा देना चाहिए। उन्हें कुछ जरुरी रियायतें भी दी जानी चाहिए। इसके ठीक विपरीत जो लोग टैक्स चोरी के करते पकड़े जाएं। उन्हें अलग श्रेणी में रखा जाए। तथा ऐसे लोगों पर कुछ मामलों में सीमित प्रतिबंध लगने चाहिए। यह सब कर चोरी संबंधी नियमों के तहत लगने वाले जुर्माने आदि से इतर हो। ऐसे लोगों के नाम क्षेत्रवार सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित भी किए जाने चाहिए ताकि वे सामाजिक सम्मान व अपमान के भागीदार हों।

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