July 29, 2008

अफसाना लिख रहा हूं दिले बे (करार) का

हाल ही में एक करार को लेकर विभिन्न मंचों पर हुए ड्रामों का पर्दा गिरने के बाद ग्रीन रूम में भूमिका निभाने वालों से लेकर दर्शकों (जनता) की प्रतिक्रिया खुलकर सामने आने लगी है।जो करार के साथ थे अब वे भी बेकरार हैं तथा जो विरोध में थे वे भी बेकरार हैं। इस एक करार कथा से खबरों की दुनिया में हजारों अफसाने चर्चा में हैं. अफसाना लिख रहा हूं दिले बे (करार) का.
पहला अफसाना हमारी अपनी विरादरी से है.जिनका नारा था खबर हर कीमत पर, उन्होंने करार की स्टिंग को छिपाया किस कीमत पर, सवाल हवा में जवाब नामालुम, इस नारे के प्रतीक जनता में सच्ची खबरों के प्रतीक माने जाने वाले राजदीप सरदेसाई इस बार क्लीन बोल्ड नजर आ रहे हैं. वे हमें बहुत अच्छे लगते थे. जी हां इस घटनाक्रम के पहले तक.जब वे अपने इंटरव्यू में अनिल कपूर की स्टाइल में अमर सिंह से लेकर प्रकाश करात पर सीधे आम आदमी के सवालों को दागते थे तो वे पत्रकार कम आम आदमी के प्रतिनिधि ज्यादा नजर आते थे. हम सभी उनके अंदर खुद को तथा उनकों अपने अंदर पाते थे. लेकिन एक करार कथा ने, न केवल उनकी शख्सियत को धुंधला किया है बल्कि उस नारे को भी अविश्वनीय बना दिया है. उम्मीद है अभी नहीं तो आगे कभी वे इस करार कथा में खुद तथा चैनल की भूमिका पर सफाई जरूर देंगे जो जनता के गले में उतर जाए और फिर से वह पुरानी चमक हासिल कर लेंगे.
दूसरा अफसाना
कल ही दिल्ली में भाजपा के एक विधायक से मुलाकात हुई। बड़े चिंतित थे. पूछा तो कहने लगे कि हमें यह समझ में नहीं आया कि हमारी पार्टी न्यूक्लीयर डील के समर्थन में है अथवा विरोध में.विरोध है तो डील में किस बात का विरोध कर रहे थे.विधायक जी के अनुसार डील का जो होना है वो तो होगा ही आम आदमी में भाजपा की डील इस बीच खराब हो गई. पार्टी कर्नाटका की जीत के बाद दिल्ली में विधानसभा चुनाव को लेकर जितने में उत्साह में थी इस करार कथा ने उस पर पानी फेर दिया. दूसरी ओर कांग्रेस में फिर से संजीवनी का संचार दिखने लगा है.भाजपा के लोग (कुछ बड़े नेताओं को छोड़ दें)इस करारकथा को पार्टी के लिए शुभ नहीं मान रहे हैं. वैसे नेता भी खुश नहीं हैं इसका थोड़ा बहुत अनुमान वे लोग भी लगा सकते हैं जिन्होंने विश्वासमत के बाद लोकसभा में आड़वाणी जी का फोटो टीवी पर देखा होगा.
अफसाना नम्बर तीन है गुरुजी को इन दिनों बुरे बुरे सपने आ रहे हैं। गुरुजी को नहीं जानते अरे वही झारखंड वाले.सपने में शशिनाथ झा का चेहरा देखने के बाद गुरुजी को रात भर नींद नहीं आती है.एक सुबह गुरुजी चेले से कहने लगे ए ससुरे कांग्रेसिए तो चैन की नींद ले रहे हैं पर अपन को मंत्री बनाने का बात लगता है भूल गए. ऊपर से रात में सपने में पुरानी बातें याद आ जाती हैं, नींद नहीं आती. चेला भी खेला खाया था, बोला गुरुजी धीरज रखो, सब ठीक हो जाएगा. यदि कांग्रेस ने मंत्री नहीं बनाया तो, भइल बिआह मोर करिबों क्या.

1 comment:

rajesh ranjan said...

bhai saheb, patrakarita ke un gandhio ke bare me bhi blog pe charcha suru kijiye jo dikhte to gandhi hai per sac ye nahi hai. apne ristedari ka korh faila rahe hai aur apne pad aur power ka galat upyog kar rahe hai. udahran aapke aaspas hi hai.