मैं अक्सर सुबह देर से सोकर उठता हूं। आज काल वेल की आवाज पर नींद टूटी तो सीधे आंख मलते हुए जाकर दरवाजा खोल दिया। देखा कि घर के बाहर दूधवाला, फलवाला, किरियाने वाला सभी खड़े थे। मैं चकराया कि क्या वे महीने का बकाया वसूल करने आ पहुंचे हैं। लेकिन अभी तो महीने में तीन दिन बाकी हैं। वैसे भी हम अखबार वालों को सात तारीख के बाद वेतन मिलता है। अलबत्ता मैं उधार तो कुछ खरीदता भी नहीं। मैने पूछा कहो भाई कैसे आए हो आप लोग। सामने किरियाने वाले लाला जी खड़े थे भइया अगले महीने का सामान आपको पहुंचाने आया हूं। एक साथ पूरे महीने का राशन है। उन्होंने साथ मे खड़े लड़के के हाथ में लटकते बडे़ से बैग की ओर इशारा किया। मैने कहा कि लेकिन भइया मैं तो सात तारीख के बाद सामान खरीदने आता हूं। लालाजी बोले कोई बात नहीं रख लो भागे थोड़े ही जा रहे हो पैसा बाद में दे देना। मैं लाला के इस स्वभाव से प्रभावित होने के बजाय आतंकित हो उठा कि जो लाला सात तारीख को पैसा न मिलने पर किसी न किसी बहाने फोन पर बकाया का जिक्र जरुर कर देता था वह इतना उदार क्यों हो गया है। फिलहाल मैने सामान रख लिया। लाला के पीछे खड़े दूधवाले को मैने कहा कि सात तारीख कोआकर पैसा ले जाना। वह बोला नही भइया पैसे के लिए हम नही आए हैं। हम पूछ रहे थे कि क्या कल से एक लीटर दूध और दै जाऊं। मैने कहा क्यों भाई मेरे घर में कोई मेहमान आने वाले हैं क्या। वह बोला नहीं साहब बच्चे बड़े हो रहे हैं कुछ ज्यादा खाना पीना उन्हें मिलना चाहिए। हमने कहा कि यह चिंता हमारी है। वैसे भी अभी हम जितना ले रहे हैं। उसी का पैसा नहीं दे पाते हैं। फिर और अधिक..... वह बोला कोई बात नहीं है। पैसा भागे थोड़े ही जा रही है। मैं परेशान हो उठा आखिर यह लोग आज इतने मेहरबान क्यों हैं। सब्जी वाले को भी मैने टरकाने के लिए कह दिया कि आज कुछ नहीं लेना है, कल आ जाना जो पिछला बकाया होगा दे दूंगा। वह बोला सर पैसे के लिए नहीं आया हूं। मेम साहब कह रही थीं कि आलू प्याज इकट्ठे दस दस किलो दे दूं। मैं वहीं लेकर आया हूं। मैने मन ही मन पत्नी को लताड़ते हुए सोचा कि क्या मायके से मनीआर्डर आने वाला है। (प्रत्यक्ष में) नहीं भाई इतनी सब्जी घर में रखने की जगह भी नहीं है। क्या करूंगा लेकर। फिर इस महीने वैसे भी खर्चे बहुत हैं। सब्जी वाला बोला, सर कोई बात नहीं है मैं बाद मे ले लूंगा। मैने कहा कि क्या बाद में पैसे नहीं देने पड़ेंगे? वह मुस्कराया। मुझे गुस्सा आ गया। मैं उससे लड़ने की हो सोच रहा था कि पत्नी ने मुझें झिंझोड़ते हुए कहा कि आज आफिस जाने का इरादा नहीं है क्या। आज तो आपकी मीटिंग भी है।
मैं नींद से जाग चुका था। पत्नी पर गुस्सा भी आ रहा था कि उसने ऐसी फिजूल की खरीददारी के लिए क्यों कोशिश की साथ ही यह भी कि वह तो मुझे जगा रही है। थोड़ी देर कुछ समझ में नहीं आया । मैं कोशिश करके उठ बैठा और सोचने लगा कि आखिर क्या हो रहा था। अब जान चुका था कि थोड़ी देर पहले जो कुछ मैं देख रहा था वह सपना था। सपने के कुछ शब्द व सीन अब भी दिमाग में घुमड़ रहे थे मैं उन्हें कभी जोड़ने व कभी दिमाग से झटकने की कोशिश कर रहा था। इतने में पत्नी ने चाय के साथ अखबार पक़ड़ाया। अखबार पढ़ते हुए एक बार मैं फिर चकराया। अंदर के पन्ने पर एक खबर छपी थी मंहगाई दर में गिरावट का दौर बना रहेगा। मुद्रा स्फीति शून्य से भी नीचे जा सकती है। ऐसे में सामान तो होगा खरीददार नहीं होंगे। चीजें आपके अनुमान से भी अधिक सस्ती होंगी। ऐसे में खरीददारों की पूछ बढ़ जाएगी। तकनीकी भाषा में इसे मुद्रा अवस्फीति कहा जाएगा। मैने सोचा कहीं मेरा सपना इसी दिन के लिए तो नहीं था। अब घर में मैने कुछ भी न खरीदने का फैसला ले लिया है। उस दिन का इंतजार है जब बिल्डर घर पर आकर कहेंगे कि भइया फ्लैट ले लो। बहुत सस्ता है। एक खरीदोगे तो साथ में एक और फ्लैट मुफ्त मिलेगा। खाने पीने की चीजें तो दुकानो पर लगभग फ्री ही रहेंगी।
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