दक्षिणी दिल्ली के सर्वोदय एंक्लेव स्थित एक तीन मंजिला भवन के तहखाने में देश के दलितों की हित चिंता का मिशन दिन-रात चलता रहता है। इसी भवन की पहली मंजिल पर दलितों के नेता उदितराज सपरिवार रहते भी हैं। आईआरएस की नौकरी छोड़ दलित हित की लड़ाई में कूदे उदितराज का मूल नाम रामराज था। उन्होंने हिंदुओं में व्याप्त जाति व्यवस्था से बगावत करते हुए वर्ष 2002 में न केवल नाम बदला, बल्कि धर्म भी बदल लिया। बाबा साहेब अंबेडकर को आदर्श मानने वाले अब बौद्ध धर्मावलंबी उदितराज यह अच्छी तरह जानते हैं कि राजनीतिक शक्ति के बिना किसी समाज का भला नहीं हो सकता, इसलिए उन्होंने इंडियन जस्टिस पार्टी बनाई। दलितों को आरक्षण दिए जाने की वह भरपूर वकालत करते हैं। इन दिनों दिल्ली में डीडीए फ्लैट आवंटन में दलितों के कोटे में हुई भारी धांधली के खुलासे को लेकर वह फिर चर्चा में हैं। पेश है बातचीत के कुछ अंश :
आप खुद को क्या मानते हैं? विचारक, सुधारक या राजनेता।
मेरी भूमिका सुधारक की है। पहले मैं सुधारक हूं तथा बाद में राजनेता भी, क्योंकि मेरा मानना है कि राजनीति ही समाज सुधार का मुख्य जरिया हो सकती है, इसीलिए मैं राजनीति में आया हूं।
आप लगातार चर्चा में रहते हैं, कभी धर्म परिवर्तन, पेरियार का समर्थन, आरक्षण की वकालत और अब डीडीए घोटाले को लेकर भी आप काफी सक्रिय हैं।
मैंने ऐसी कोई कोशिश नहीं की। मैंने धर्म बदला था, क्योंकि मैं बाबा साहेब को अपना आदर्श मानता हूं। पेरियार के समर्थन में यूपी में गया, क्योंकि जो कांशीराम कभी पेरियार मेला लगाते थे, उन्हीं की विरासत चलाने वाली मायावती अब पेरियार पर पाबंदी लगा रही हैं। यह वैचारिक छलावा है, जिसका मैंने विरोध किया। डीडीए में घोटाले का जहां तक मामला है, इसे मैं दलितों का मुद्दा नहीं, बल्कि विशुद्ध रूप से भ्रष्टाचार का मुद्दा मानता हूं।
कैसा होगा भविष्य का दलित आंदोलन? यह और मजबूत होगा।
हम बड़ी लड़ाई की तैयारी में जुटे हैं। आज दलित आंदोलन की राह में सबसे बड़ी बाधा खुद दलित हैं। वे जातियों में बंटे हैं। जातीय अहंकार, स्वार्थ तथा चमचागिरी दलित आंदोलन को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं। (बातचीत के बीच में लगातार उनके मोबाइल व फोन की घंटी बजती रहती है। वह सभी फोन सुनते हैं तथा लोगों को आंदोलन के बारे में निर्देश भी देते रहते हैं। लोग निजी समस्याएं बताते हैं तो वह मदद के आश्वासन के साथ ही यह आग्रह करते हैं कि समाज के लिए भी सोचो)
आप धार्मिक भेदभाव से जातीय भेदभाव को अधिक खतरनाक क्यों मानते हैं?
धर्म विकास में बाधा नहीं है। जातियां सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक सभी पक्षों को प्रभावित करती हैं। तभी मैं कहता हूं कि जातियां समाप्त कर दो तथा समान अनिवार्य शिक्षा लागू कर दो तो मैं सबसे पहला व्यक्ति होऊंगा, जो आरक्षण को समाप्त करने की मांग करेगा। नहीं तो आरक्षण होना चाहिए और अधिक होना चाहिए।
आप मायावती का सबसे अधिक क्यों विरोध करते हैं?
मैं मायावती का नहीं, बल्कि उनकी नीतियों का विरोध करता हूं। बसपा ने बाबा साहब के जातिविहीन सिद्धांतों को नकार दिया है। वह जातीय संगठनों को बढ़ावा देकर जातियों को और मजबूत कर रही हैं।
दलित फ्रंट ने भी प्रधानमंत्री के लिए पासवान का नाम उछाल दिया।
अमेरिका में अश्वेत बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत में भी दलित प्रधानमंत्री बनाने की चर्चा है। मैं समझता हूं कि वर्तमान में रामविलास पासवान से योग्य अन्य कोई दलित उम्मीदवार नहीं है, जो प्रधानमंत्री बन सके और यह होना भी चाहिए।
आपने सवर्ण लड़की से प्रेम विवाह किया। सरकारी नौकरी छोड़ दी, दलित आंदोलन में कूदे। आपके फैसलों में परिवार का कितना सहयोग मिलता है?
मैं इलाहाबाद के एक गांव से ताल्लुक रखता हूं। आईआरएस बनने के बाद सीमा राज से शादी की। पत्नी भी आयकर विभाग में कमिश्नर हैं। मेरे हर फैसले में पत्नी ने पूरा साथ दिया। मैं परिवार के साथ क्वालिटी लाइफ जी रहा हूं। एक बेटा तथा एक बेटी हैं, जिनसे मेरे दोस्ताना संबंध हैं। कभी मेरे सामाजिक जीवन में परिवार बाधा नहीं बना और मैंने भी परिवार की उपेक्षा नहीं की।
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