August 03, 2009

और चकरू गए चकराय

वि सम्मेलनों में अपनी वाकपटुता से बड़े बड़ों को धराशायी कर देने वाले प्रसिद्ध हास्य कवि अशोक चक्रधर हिंदी अकादमी में पहुंचकर खुद ही चकरा गए हैं। उन्हें अपनों ने ही अचानक जता दिया कि वे हिंदी साहित्यकारों की बिरादरी में ओबीसी की हैसियत रखते हैं। उन्होंने भले ही मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की निकटता व कांग्रेस के लिए चुनाव में नारे लिखकर अकादमी में उपाध्यक्ष की कुर्सी हथिया ली हो, लेकिन साहित्य बिरादरी के कुछ लोग उन्हें साहित्यकार मानने को ही तैयार नहीं है। अशोक जी ने जब से यह सुना है कि हिंदी के साहित्यकार उन्हें बिरादरी का मानते ही नहीं है, वे सन्न हैं। अब न वे मुंह खोल रहे हैं और न कुछ बोल रहे हैं। हुआ कुछ यूं कि कुछ दिन पहले जब दिल्ली सरकार ने उन्हें हिंदी अकादमी का उपाध्यक्ष मनोनीत किया तो वे अपने स्वभाव के अनुसार कुछ स्थानों पर चहकते हुए गंभीर साहित्य व मंचीय साहित्य पर कुछ बोल गए। क्या बोला क्यों बोला यह तो जगजाहिर नहीं हुआ लेकिन दिल्ली सरकार की ओर से अकादमी संचालन समिति में मनोनीत तमाम सदस्य साहित्यकारों ने उन्हें आड़े हाथों ले लिया। सिर मुंडाते ओले पड़े वाली कहावत हुई। उपाध्यक्ष बनने के बाद अभी तो कोई बैठक भी नहीं हुई थी। सदस्यों के साथ उपाध्यक्ष की औपचारिक मुलाकात भी नहीं हुई कि अकादमी में वितंडा खड़ा हो गया। चर्चित साहित्यकार अर्चना वर्मा ने अकादमी के संचालन समिति से इस्तीफा दे दिया। उनके कुछ दिन बाद अकादमी के सचिव व साहित्यकार ज्योतिष जोशी ने भी इस्तीफा दे दिया। कभी अशोक चक्रधर के गुरु रह चुके वरिष्ठ साहित्यकार नित्यानंद तिवारी ने भी अकादमी से नाता तोड़ने की घोषणा कर दी। साहित्य जगत में अशोक चक्रधर से नाराज साहित्यकारों का खुला आरोप है कि अशोक चक्रधर को कांग्रेस की सेवा करने के फलस्वरूप अकादमी में उपाध्यक्ष पद मिला है। वे अब अकादमी को भी राजनीति का अड्डा बना देंगे। उधर इन हमलों से चकराए अशोक चक्रधर का कहना है कि अभी तो हमने कुछ किया ही नहीं। चकरू (अशोक चक्रधर का उपनाम) खुलकर पूरे प्रकरण पर कुछ बोलने को तैयार नहीं है। चकरू भले ही अपनी राजनैतिक वफादारी व इनाम पर कुछ भी सार्वजनिक रूप से बोलने को तैयार न हो लेकिन उनके विरोधी जमकर हमले कर रहे हैं। चकरू के विरोधी हैं तो कुछ साहित्यकार उनका समर्थन भी कर रहे हैं लेकिन मंचीय व गंभीर साहित्य की धारा के बीच राजनीति की पेंच के चलते कोई खुलकर उनके समर्थन में नहीं आना चाह रहा है। उधर चकरू सिर झुकाकर इस तूफान के गुजरने का इंतजार कर रहे हैं। ताजा हालात पर उनकी ही एक कविता यहां मौजूं है।
कह चकरू चकराय, अक्ल, क्या कहती।
नहीं प्रशंसा, निंदा ही है जिंदा रहती।

1 comment:

Anonymous said...

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